राजा परीक्षित की एक ‘छोटी’ भूल और कलियुग का धरती पर आगमन: एक पौराणिक कथा
कुरु वंश के न्यायप्रिय राजा परीक्षित ने कैसे एक गलती से कलियुग को पृथ्वी पर 4,32,000 वर्षों तक रहने की अनुमति दे दी?
द्वापर युग के अंत और कलयुग के आरंभ की कहानी भारतीय धर्मग्रंथों में सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठे, अभिमन्यु के पुत्र, महाराजा परीक्षित जितने दयालु और विवेकशील थे, उतनी ही बड़ी भूल उनसे तब हुई जब तीव्र भूख और प्यास ने उनके विवेक को ढक लिया। क्या आप जानते हैं कि कलयुग ने राजा परीक्षित के सोने के मुकुट में कैसे प्रवेश किया, और कैसे एक ऋषि के श्राप ने कुरुवंश के इस महान राजा के जीवन का अंत किया? आइए, जानते हैं राजा परीक्षित और कलयुग के आगमन की पूरी मार्मिक कथा।
महाभारत के बाद, जब धर्म की रक्षा करने वाले भगवान श्री कृष्ण अपने धाम चले गए, तो पृथ्वी पर अधर्म का प्रभाव बढ़ने लगा। पांडवों के वंशज राजा परीक्षित ने जब अपने राज्य में एक व्यक्ति (जो वास्तव में कलियुग था) को गाय और बैल (जो क्रमशः पृथ्वी और धर्म के प्रतीक थे) को सताते हुए देखा, तो वे क्रोधित हो उठे और उसे मारना चाहा।
कलियुग के बढ़ते प्रभाव के कारण, एक दिन राजा परीक्षित पर शिकार खेलने का ऐसा जुनून सवार हुआ कि वे एक हिरण का पीछा करते-करते घने वन में बहुत दूर निकल गए। इस अथक pursuit के कारण, उन्हें तीव्र भूख और प्यास सताने लगी। व्याकुलता इतनी बढ़ गई कि उनका विवेक धूमिल होने लगा।
भूख-प्यास से बेहाल राजा परीक्षित को तभी दूर एक शांत आश्रम दिखाई दिया। उन्होंने आशा भरी दृष्टि से देखा और आश्रम में प्रवेश किया। वहाँ, उन्होंने देखा कि परम ज्ञानी ऋषि शमीक अपनी गहन तपस्या में लीन थे, उनकी आँखें बंद थीं और वे बाह्य संसार से पूरी तरह विरक्त थे। राजा ने आदरपूर्वक ऋषि को प्रणाम किया और उनसे पीने के लिए पानी माँगा। परंतु, ऋषि अपनी साधना में इतने लीन थे कि उन्होंने राजा की बात सुनी ही नहीं, और मौन बने रहे।
बार-बार आग्रह करने पर भी जब ऋषि ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, तो राजा परीक्षित को कलियुग के प्रभाववश अत्यंत क्रोध आ गया। उनकी भूख-प्यास ने उनके विवेक पर पूरी तरह से पर्दा डाल दिया था। क्रोधित होकर वे वहाँ से जाने लगे, लेकिन कुछ ही कदम चलने पर उनकी दृष्टि ज़मीन पर पड़े एक मृत सर्प पर पड़ी। कलियुग ने उनकी व्याकुलता को इस हद तक बढ़ा दिया था कि राजा ने अपने क्रोध और निराशा में, उस मरे हुए सर्प को अपनी तलवार की नोंक से उठाकर ऋषि शमीक के गले में डाल दिया। यह उनकी सबसे बड़ी ‘गलती’ थी, जिसके गंभीर परिणाम होने वाले थे।
तब कलियुग ने हाथ जोड़कर राजा परीक्षित से क्षमा माँगी और तर्क दिया कि द्वापर युग समाप्त हो चुका है और काल के नियम के अनुसार अब उसका समय आ गया है। दयालु राजा परीक्षित ने उसे न मारते हुए, अपने राज्य से बाहर जाने का आदेश दिया।
कलियुग ने राजा से विनती की कि यह पूरी पृथ्वी उन्हीं के अधीन है, इसलिए वह उसे रहने के लिए कोई निश्चित स्थान दें। बहुत विचार-विमर्श के बाद, राजा परीक्षित ने कलियुग को रहने के लिए चार स्थान दिए:
- द्यूत (जुआ)
- मद्यपान (शराब)
- परस्त्रीगमन (अवैध संबंध)
- हिंसा (कसाई घर)
इन चार स्थानों से संतुष्ट न होने पर, कलियुग ने पाँचवें स्थान की माँग की। राजा परीक्षित ने उसे हँसते हुए पाँचवाँ स्थान दिया: ‘स्वर्ण’ (सोना), यह सोचकर कि उनके राज्य में स्वर्ण केवल शुद्ध और धर्मपूर्वक अर्जित किया जाता है।
यहीं हुई राजा से चूक: राजा परीक्षित ने यह नहीं सोचा कि स्वर्ण के माध्यम से लोभ और लालच भी प्रवेश करेगा। कलियुग ने तुरंत राजा के ही सोने के मुकुट में अपना वास बना लिया। मुकुट में प्रवेश करते ही, कलियुग के प्रभाव से राजा परीक्षित की बुद्धि दूषित हो गई।
इस दूषित बुद्धि के कारण ही, शिकार के दौरान प्यास से व्याकुल राजा परीक्षित ने शमीक ऋषि के ध्यान भंग न होने पर, अपमानवश उनके गले में एक मरा हुआ सर्प डाल दिया। इसी अपमान के कारण ऋषि के पुत्र श्रृंगी ने राजा को श्राप दिया कि अगले सात दिनों में उन्हें तक्षक नाग डस लेगा।
इस प्रकार, राजा परीक्षित की एक छोटी सी गलती, यानी सोने में कलियुग को स्थान देना, अधर्म की शक्ति को उनके मन में ले आई, जिसके कारण उन्हें श्राप मिला और कलियुग पूरी तरह से पृथ्वी पर स्थापित हो गया। इसी घटना को कलियुग के पूर्ण आरंभ का कारण माना जाता है, जिसकी वजह से आज पूरी दुनिया अधर्म, असत्य और लोभ के प्रभाव को झेल रही है।
यहाँ इस संशोधित विवरण के आधार पर चित्र दिए गए हैं:
- तीव्र भूख और प्यास से व्याकुल राजा परीक्षित, एक आश्रम की ओर देखते हुए: राजा परीक्षित जंगल में थके हुए, पसीने से लथपथ और प्यास से व्याकुल दिख रहे हैं। उनकी आँखें दूर एक शांत आश्रम पर टिकी हैं, जहाँ वे आश्रय और पानी की उम्मीद कर रहे हैं। उनके चेहरे पर हताशा स्पष्ट है।